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Posted by : Unknown
Thursday, 15 January 2015
साफ करेगी पानी बिल्ली की पूंछ
सैम हिग्गिनबॉटम इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंस (शियाट्स) के वैज्ञानिकों ने बेकार वस्तुओं का इस्तेमाल कर पानी साफ करने की सस्ती और देसी तकनीक विकसित की है। कम लागत और मामूली बिजली खर्च पर इस तकनीक के जरिए हजारों लीटर पानी साफ किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने संस्थान परिसर में इस नई तकनीक से पानी शुद्ध करने का प्लांट स्थापित किया है।
इस नई तकनीक को विकसित करने में खेतों में उगने वाली टायफा नाम की बेकार जंगली घास और खराब बिल्डिंग मैटेरियल का इस्तेमाल किया गया है। बिल्ली की पूंछ की तरह दिखने वाली भूरे रंग की इस घास को कैट टेल नाम से भी जाना जाता है। शियाट्स स्थित वॉ स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के युवा वैज्ञानिक डॉ. जे लार्डविन और गिरीश कुमार की टीम की ओर से विकसित तकनीक में इस घास और मलबा के जरिए अशुद्ध पानी को फिल्टर किया जाता है।
टायफा में पानी में पाए जाने वाले अपशिष्ट पदार्थो और हानिकारक तत्वों को सोखने की क्षमता होती है। मलबा और टायफा के जरिए खराब पानी को ठीक वैसे ही साफ किया जाता है जैसे प्राकृतिक तौर पर भूमि के भीतर जलाशय का पानी शुद्ध होता है। उन्होंने बताया कि यह तकनीक खास तौर से ग्रामीण और अविकसित क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी हो सकती है क्योंकि इसका प्लांट तैयार करने में लागत कम लगती है और बिजली की खपत भी काफी कम है। इस प्लांट को अप्रशिक्षित व्यक्ति भी संचालित कर सकता है, यह होगा फायदा जल की अशुद्धता से होने वाली तरह-तरह की बीमारियों का खतरा टलेगा। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां गांव के गांव एक साथ बीमार पड़ जाते हैं। शहर में तो लोग यूवी, आरओ आदि फिल्टर प्रयोग करते हैं। पर कम लागत वाली पानी साफ करने की तकनीक से ग्रामीणों के लिए भी साफ पानी का सपना साकार हो सकेगा। जल संचयन में भी कारगर तकनीक ईजाद करने वालों का दावा है कि इससे जल संचयन में भी मदद मिलेगी। क्योंकि यह तकनीक न सिर्फ तालाब और पोखर के पानी को साफ कर पीने योग्य बनाती है। बल्कि गोशाला और अन्य इस्तेमाल से नाली में बहे पानी को भी दोबारा साफ कर पीने लायक बनाये।